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मधेपुरा

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भोजपुर का उदय सन 1972 मे हुआ । इसके पूर्व यह शाहाबाद ज़िला का हिस्सा था । सन 1972 मे शाहाबाद ज़िला दो भागो मे बंट गया – भोजपुर और रोहतास । बक्सर तब भोजपुर का एक सब डिवीजन था । सन 1992 मे भोजपुर पुनः बंटा और बक्सर एक स्वतंत्र ज़िला बन गया । भोजपुर ज़िला के तीन सब डिवीजन हुए – आरा सदर , जगदीशपुर और पीरो । आरा शहर भोजपुर का प्रमुख शहर बन गया और ज़िला का हेड क्वाटर भी है। भोजपुर के उत्तर मे सारण और बलिया(ऊ. प्र) , दक्षिण मे रोहतास , पूर्व मे पटना एवं पश्चिम मे जहानाबाद एवं अरवल ज़िला से घिरा है । ऐतिहासिक दृष्टि से भोजपुर का पुराने शाहबाद ज़िला से अट्टूट् रिश्ता है । भोजपुर का आरा शहर का नाम संस्कृत के अरण्य से लिया गया है जिसका अर्थ है जंगल । इसका तात्पर्य यह है कि आज का आरा पूर्व मे एक घनघोर जंगल था । एक मिथक के अनुसार भगवान राम के गुरु आचार्य विश्वामित्र का आश्रम इसी क्षेत्र मे कही था । 1961 की जनगणना मे भी भोजपुर के प्राचीनता की चर्चा है जो उस समय पुराने शाहबाद ज़िले का एक हिस्सा था । प्राचीन के में शाहाबाद मगध साम्राज्य का हिस्सा था और उसमे पटना तथा गया जिला का भी हिस्सा था. हालाँकि यह अशोक सम्राट के साम्राज्य के अंतर्गत था , जिला के अधिकांश भाग में बुद्ध के स्मारक दीखते हैं जो इंगित करता है कि उस समय अधिकांश भाग बुद्ध से प्रभावित था. ईसा पूर्व सातवी सदी में विख्यात यात्री ह्वेनसांग शाहाबाद के मो-हो-सोलो में आया था. आज उस जगह की पहचान मसाढ़ गाँव के रूप में की गई है जो आरा बक्सर सड़क पर आरा से 10 किलो मीटर की दूरी पर अवस्थित है. भोजपुर के इतिहास गुप्ता वंश के दौरान क्या था, इसके बारे में बहुत कुछ ज्ञात नहीं है. आदिवासीयों के हाथ से निकल कर इसकी कमान क्रूर डाकुओ के हाथ आ गई. उस समय के प्रमुख प्रभावी लोग थे – केरो . जिला के अधिकांश भागों पर उन्होंने शासन किया. उसके बाद मालवा के उज्जैन प्रान्त से राजपूत आये . उनके बादशाह उस समय राजा भोज थे. इस जिला का नाम शायद उन्हीं के नाम पर भोजपुर पड़ा है. भोजपुर के मध्य काल का इतिहास निम्नं वर्णित है :- आरा मे रहते हुए , अफगानों पर विजय प्राप्त कर बाबर ने 1529 मे बिहार पर अधिकार जमाया. इस घटना के बाद इस क्षेत्र का नाम शाहाबाद पड़ा जिसका शाब्दिक अर्थ है – शाहों का शहर. उसके बाद अकबर ने शाहाबाद को अपने राज्य मे मिला लिया. हलाकि उसकी पकड़ बहुत मजबूत नहीं रही. अकबर के मंत्री मानसिंह ने जिला के राजस्व वसूली के लिए काफी कोशिशे की. लकिन स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया. जगदीशपुर और भोजपुर के राजा ने मुगलों को पराजीत किया. भोजपुर के राजा ने जहाँगीर के खिलाफ विद्रोह किया. शाहजहाँ एवं उसकी रानी ने उनके उत्तराधिकारी राजा प्रताप एवं उनके दरबारी को मरवा दिया. इसके बाद भोजपुर लगभग शांत रहा पर मुगलों के लिए अंत तक कठिनाई बनी रही. इसके बाद इस जिला मे 1857 की क्रांति हुई जब कुअंर सिंह ने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह कर दिया.

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कहा जाता है कि पौराणिक काल में कोशी नदी के तट पर ऋषया श्रृंग का आश्रम था। ऋषया श्रृंग भगवान शिव के भक्त थे और वह आश्रम में भगवान शिव की प्रतिदिन उपासना किया करता था। श्रृंग ऋषि के आश्रम स्थल को श्रृंगेश्‍वर के नाम से जाना जाता था। कुछ समय बाद इस उस जगह का नाम बदलकर सिंघेश्‍वर हो गया। महाजनपद काल में मधेपुरा अंग एवं मौर्य वंश का हिस्सा था। इसका प्रमाण उदा-किशनगंज स्थित मौर्य स्तम्भ से मिलता है। बाद के वर्षों में मधेपुरा का इतिहास कुषाण वंश के शासनकाल से सम्बन्धित है। शंकरपुर प्रखंड के बसंतपुर तथा रायभीर गांवों में रहने वाले भांट समुदाय के लोग कुशान वंश के परवर्ती हैं। मुगल शासक अकबर के समय की मस्जिद वर्तमान समय में सारसंदी गांव में स्थित है, जो कि इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, सिंकंदर शाह भी इस जिले में घूमने के लिए आए थे ।

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